Monday, December 31, 2018

2000 रु. में iPhone की बैटरी रिप्लेस कराने का आखिरी मौका

आज 31 दिसंबर है और आपके पास iPhone की बैटरी सस्ते में खरीदने का मौका है. पुराने आईफोन की बैटरी रिप्लेस करानी है तो आप सिर्फ 2,000 रुपये में करा सकते हैं. 1 जनवरी के बाद से आपकी यही बैटरी बदलवाने के लिए शायद 6,500 रुपये या इससे ज्यादा देना पड़ सकता है.

दरअसल ऐपल ने पुराने iPhone की बैटरी सस्ती करने का ऐलान काफी पहले ही किया था और इसकी आखिरी तारीख 31 दिसंबर 2018 है. पिछले साल दिसंबर में इसका ऐलान किया गया था. इसकी वजह कंपनी द्वारा पुराने मॉडल की परफॉर्मेंस कम करनी थी. कंपनी ने माना था कि वो पुराने iPhone मॉडल्स का परफॉर्मेंस कम कर देती है और इसके पीछे कंपनी ने बैटरी का हवाला दिया. कंपनी का कहना था कि पुरानी बैटरी की वजह से फोन में दिक्कते आ सकती थीं, इसलिए परफॉर्मेंस कम कर दिया गया.

इसके बाद कंपनी ने इसे ठीक करने के लिए लोगों से पुरानी बैटरी बदलवाने को कहा और इस सस्ते ऑफर की शुरुआत कर दी. हालांकि हाल ही में लॉन्च हुए आईफोन इस ऑफर के लिए योग्य नहीं होंगे.

ये हैं ऑफर के लिए योग्य स्मार्टफोन्स iPhone SE, iPhone 6 Plus, iPhone 6s, iPhone 6s Plus, iPhone 7, iPhone 8, iPhone 8 Plus और iPhone X. बैटरी रिप्लेसमेंट वाले ऑफर में iPhone XS, XS Max और XR नहीं आते हैं.

बैटरी रिप्लेसमेंट के लिए ऐपल के ऑथराइज्ड सर्विस सेंटर में काफी लंबी लाइन भी देखने को मिल रही है. बैटरी रिप्लेस्मेंट के लिए कस्टमर्स को सबसे पहले ऐपल के ऑथराइज्ड सर्विस सेंटर जाना होता है यहां फोन को चेक किया जाता है और अगर जरुरत है तो बैटरी रिप्लेस की जाएगी. 

मारपीट के आरोपों को बताया गलत

वहीं, देवरिया जेल के अधीक्षक डीके पांडे मोहित जायसवाल के आरोपों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि मारपीट की सूचना पूरी तरह गलत है. दोनों के बीच नियम कायदों के मुताबिक मुलाकात हुई.  जायसवाल ने इस संबंध में उन्हें कोई शिकायत नहीं की है.

डीके पांडेय ने कहा कि 26 तारीख को मोहित जायसवाल, अतीक अहमद से मिलने आए थे. दिन में 11 बजे एक आदमी के साथ आए मोहित की मुलाक़ात अतीक से जेल नियमों के अनुसार कराई गई थी. अपहरण करने के मामले की कोई जानकारी नहीं है. मैं इस मामले में आंतरिक रूप से जांच करूंगा. सीसीटीवी फुटेज भी देखूंगा. वहीं, इस मामले में मोहित की शिकायत पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया है और जांच शुरू कर दी है.

Wednesday, December 26, 2018

Terrorist voice change क्यों डर गया है आतंक का आका हाफिज सईद!

वो हमेशा ज़हर उगलता है. नफरत की बोली बोलता है. खून-खराबे के बारे में ही सोचता रहता है. और तो और जब-तब गीदड़-भभकियां भी देता रहता है. मगर हकीकत ये है कि वो खुद डरपोक और कायर है. जी हां, लश्कर का सरगना और दस मीलियन डॉलर इनामी आतंकवादी हाफिज सईद का डर पहली बार ज़माने के सामने आया है. कल तक जो हाफ़िज़ सईद हिंदुस्तान को सबक सिखाने का दम भरा करता था. आज वही हाफिज सईद भारतीय फौज से बुरी तरह डर गया है और उसका ये डर बाकायदा एक वीडियो में कैद हो गया.

आतंकी हाफिज सईद कह रहा है "मैं आज अपने अजीम कश्मीरी भाइयों की इस कद्र अजीम कुर्बानी पर आज उनको तहसीम पेश करता हूं. इंडियन आर्मी चीफ से ये कहना चाहता हूं कि कबसे गोलियां मार रहे हैं. सीधी गोलियां मारना.. मर्दों औरतों को इस तरह कत्ल करना क्या यही रस्ता है. ये दर्जन से ज्यादा कत्ल और बीसियों जख्मी जान तोड़ रहे हैं. ये गोलियां कत्ल इससे दुनिया में मसले हल नहीं होते. वजीर-ए-आजम से गुजारिश करता हूं इस मसले को छोड़ ना दिया जाए."

ये हाफिज़ को क्या हो गया. मालूम होता है आतंकिस्तान में सब खैरियत नहीं है. वरना अपनी गीदड़ भभकियों के लिए मशहूर हाफिज़ सईद के बयानों में ये बेबसी में नज़र ना आती. घाटी में ऑपरेशन ऑल आउट का असर हाफिज़ सईद और उसके गुर्गों पर ठीक वैसे ही हो रहा है. जैसा घर में मच्छर भगाने वाली मशीन लगाने के बाद मच्छरों का होता है.

भारत का दुश्मन हाफिज सईद कह रहा है "मैं पूछता हूं आर्मी चीफ के साथ जो आखिरी ऑपरेशन करने जा रहा है. सीधी गोलियां मारना. मर्दों औरतों को इस तरह कत्ल करना क्या यही रस्ता है तहरीकों को खत्म करने का. ये मसाइल के हल करने का. एशिया के सबसे बड़े चैंपियन बनने की कोशिश कर रहे हैं. मैं उस हिंद सरकार और आर्मी चीफ से पूछना चाहता हूं. जो इजाफा किया है तो आप इसका क्या नतीजा ले लेंग. एक ही रस्ता है. कश्मीर को आजादी दो."

दरअसल, ये हमारे जवानों को हल्के में ले रहे थे. मगर सेना ने थोड़ी आंख क्या दिखाई. ये तो घुटनों पर ही आ गए. और इंसानियत का पाठ पढ़ाने लगे. मगर जनाब इंसानियत का सबक लेने या देने की पहली शर्त. इंसान होना है. और इस पैमाने में दुनिया का ये सबसे खूंखार आतंकी फिट नहीं बैठता है. खैर इसे हाफिज़ सईद की वो बौखलाहट समझिए जिसे अल्फाज़ नहीं मिल पा रहे हैं.

भारतीय सेना के ऑपरेशन ऑलआउट की वजह से कश्मीर में पाकिस्तान से एक्सपोर्ट होने वाले आतंकवादियों की हालत तू चल मैं आया वाली हो चुकी है. अब आलम ये है कि कश्मीर के तमाम आतंकी संगठनों में स्टाफ की कमी हो गई है. और इस कमी को पूरा करने के लिए कश्मीर के नौजवानों का अपहरण किया जा रहा है ताकि उन्हें बरगला कर आतंकी बनाया जा सके. जो अपनी ही घाटी के लोगों का कत्लेआम करें. मगर ऑपरेशन ऑल आउट ने तो हाफिज़ के तमाम प्लान की धज्जियां उड़ा रखी हैं. और उल्टा घाटी को बेगुनाहों के खून से लाल करने वाला अब शांति का पाठ पढ़ा रहे हैं.

सेना के ऑपरेशन ने हाफिज़ के तमाम मनसूबों पर ना सिर्फ पानी फेर दिया है बल्कि उसे ये एहसास भी करा दिया है कि भारतीय जवानों का ये फुल एक्शन तब तक जारी रहेगा जब तक घाटी के आतंकियों को जन्नत तक पहुंचा नहीं दिया जाता है. साल अभी खत्म भी नहीं हुआ और सेना अब तक 251 आतंकियों को मौत के घाट उतार चुकी है.

गिनती अभी भी जारी रहेगी. और तब तक ये काउंटडाउन चलता रहेगा, जब तक घाटी को आतंकियों से क्लीन नहीं कर दिया जाता. सेना ने भी कसम खा रखी है कि जब तक पाकिस्तान कश्मीर के पत्थरबाजों को देशद्रोह की घुट्टी पिलाना बंद नहीं कर देता. तब तक ये ऑपरेशन रुकने वाला नहीं है. लिहाज़ा तब तक हाफिज के इन वीडियो शोक संदेशों की आदत डाल लीजिए.

अपने वीडियो मैसेज में हाफिज सईद कह रहा है "मैं आज अपने अजीम कश्मीरी भाइयों की इस कद्र अजीम कुर्बानी पर आज उनको तहसीम पेश करता हूं और मैं यकीन से कहता हूं कि इंशाअल्लाह कश्मीर की आजादी के दिन करीब हैं. अल्लाह ताला शोहदाओं की कुर्बानी अता फरमाए. जल्द सेहतयाब करे लेकिन मैं गुजारिश करना चाहता हूं कि आपने बड़े रस्ते का इंतखाब कर लिया है. जिस सतह की कुर्बानी दे दी है. आजादी की कुछ नहीं है. इंशा अल्लाह बहुत जल्द कश्मीर के लोगों को एक शानदार आजादी इस सदी का सबसे बड़ा वाकया होगा."

हाफिज सईद का ग़म समझा जा सकता है. क्यों कि पिछले दो सालों से.. जब से ऑपरेशन ऑल आउट शुरू हुआ है. तब से सरहद पार से भारत में आतंकी आते तो ज़रूर हैं, मगर वापस नहीं जा पाते हैं. अब तक हाफिज़ के सैकड़ों गुर्गे बिना कुछ किए ही कुर्बान हो चुके हैं. और आतंक के एक भी मंसूबे को भारतीय सेना ने पूरा नहीं होने दिया है.

Monday, December 17, 2018

'गोवा सीएम मनोहर पर्रिकर के साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं?'- सोशल

इस तस्वीर में मनोहर पर्रिकर ड्रिप लगाकर एक निर्माणाधीन पुल का दौरा करते हुए इंजीनियरों को निर्देश देते नज़र आ रहे हैं.

ठीक एक दिन पहले ही पर्रिकर गोवा में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के स्थायी कैंपस की आधारशिला का शिलान्यास करते दिखे थे.

इन दोनों ही मौक़ों की तस्वीरें सीएम मनोहर पर्रिकर के ट्विटर अकाउंट से शेयर की गईं.

अब सोशल मीडिया पर लोग इन दोनों ही तस्वीरों पर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. कुछ लोग इन तस्वीरों पर पर्रिकर को लेकर सहानुभूति जता रहे हैं और कुछ हैरानी.

जितेंद्र लिखते हैं, ''मनोहर पर्रिकर को प्लीज़ कुछ आराम दीजिए.''

किरन लिखती हैं, ''मनोहर सर, अपनी सेहत का ख्याल रखिए. आराम कीजिए और ज़रूरी दवाइयां लीजिए.''

सूर्या लिखते हैं, ''इन तस्वीरों को देख नहीं सकता. ये लोग पर्रिकर के साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं?''

उमेश ने लिखा, ''युवाओं के लिए पर्रिकर प्रेरणा के स्रोत हैं. मैंने कभी किसी नेता में ऐसी लगन नहीं देखी. वो अपनी सेहत की परवाह नहीं करते हैं. मेरी दूसरे नेताओं को सलाह है कि वो मनोहर पर्रिकर से कुछ सीखें.''

हर्षल ने ट्वीट किया, ''इस तस्वीर को देखकर रोने का मन करता है. अपनी सेहत का ख्याल रखिए. हमें देश में आप जैसे लोगों की और ज़रूरत है.''

पर्रिकर को है क्या बीमारी?
पर्रिकर पैन्क्रियाज़ यानी अग्नाशय कैंसर से जूझ रहे हैं.

पैन्क्रियाज़ कैंसर की वेबसाइट के मुताबिक़, शुरुआती स्टेज में इस बीमारी के बारे में नहीं पता चल पाता है.

इस बीमारी का किस पर कितना असर होता है, ये किसी व्यक्ति की सेहत पर निर्भर करता है. आमतौर पर इसके लक्षण ये हैं कि बीमार व्यक्ति के पेट और पीठ में दर्द होता है, अचानक वज़न घटने लगता है और पाचन तंत्र बिगड़ जाता है.

इसके अलावा भूख कम हो जाती है और कुछ मामलों में शुरुआती लक्षणों में बीमार व्यक्ति को पीलिया तक हो जाता है.

अग्नाशय के कैंसर का इलाज काफ़ी मुश्किल है और इस बीमारी के केवल पांच फ़ीसदी मरीज़ ही बीमारी होने के बाद पाँच साल तक जिंदा रह पाते हैं.

Thursday, December 13, 2018

भारतीय टीम के सामने नॉकआउट में ‘आक्रामक’ डच चुनौती

विश्व कप में 43 साल बाद पदक जीतने का सपना लेकर उतरी भारतीय हॉकी टीम के सामने गुरुवार को क्वार्टर फाइनल में नीदरलैंड के रूप में कड़ी चुनौती होगी, जो पिछले दो मैचों में दस गोल करके अपने आक्रामक तेवर जाहिर कर चुका है. यह मुकाबला शाम 7.00 बजे से है. इससे पहले गुरुवार को ही एक अन्य क्वार्टर फाइनल में जर्मनी का सामना बेल्जियम से होगा.

विश्व रैंकिंग में नीदरलैंड से एक पायदान नीचे पांचवें स्थान पर काबिज भारत ने पूल-सी में तीन मैचों में दो जीत और एक ड्रॉ के बाद शीर्ष पर रहकर अंतिम आठ में जगह बनाई. वहीं नीदरलैंड पूल-डी में दूसरे स्थान पर रहकर क्रॉसओवर खेला और कनाडा को 5-0 से रौंदकर क्वार्टर फाइनल में पहुंचा.

खचाखच भरे रहने वाले कलिंगा स्टेडियम में दर्शकों को इंतजार भारत की एक और शानदार जीत के साथ पदक के करीब पहुंचने का है. आखिरी लीग मैच आठ दिसंबर को खेलने वाली भारतीय टीम चार दिन के ब्रेक के बाद उतरेगी. कोच हरेंद्र सिंह के मुताबिक असली टूर्नामेंट की शुरूआत नॉकआउट से होगी और उनकी टीम डच चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है.

उन्होंने कहा था,‘हम आक्रामक हॉकी खेल रहे हैं और इसमें कोई बदलाव नहीं होगा. हमें बड़ी टीमों के खिलाफ अच्छा खेलने का अनुभव है और नीदरलैंड को भी हम हरा सकते हैं. यह टीम बड़ी टीमों के रसूख से खौफ खाने वालों में से नहीं है और मुझे यकीन है कि हम इस बार विश्व कप से खाली हाथ नहीं लौटेंगे.’

कोच के आत्मविश्वास की वजह भारतीय टीम का पूल चरण में प्रदर्शन है, जिसमें दुनिया की तीसरे नंबर की टीम बेल्जियम के रहते भारत ने पहले स्थान पर रहकर नॉकआउट के लिए सीधे क्वालिफाई किया. उसने दक्षिण अफ्रीका को 5-0 से हराया, जबकि कनाडा को 5-1 से शिकस्त दी. बेल्जियम को आखिरी चार मिनट में गोल गंवाने के बाद 2-2 से ड्रॉ खेलना पड़ा.

दूसरी ओर नीदरलैंड ने अभी तक टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा 18 गोल दागे हैं. उसने पूल चरण में मलेशिया को 7-0 से और पाकिस्तान को 5-1 से हराया, हालांकि जर्मनी से 1-4 से पराजय झेलनी पड़ी. डच कोच मैक्स केलडास ने स्वीकार किया कि कलिंगा स्टेडियम पर बड़े मैच में भारत को हराना चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन कहा कि उन्हें इसका अनुभव है और खिलाड़ी इसके लिए तैयार हैं.

भारतीय टीम ने पिछले कुछ अर्से में नीदरलैंड के खिलाफ अपना रिकॉर्ड सुधारा है और पिछले नौ मैचों में दोनों ने चार-चार जीते और एक ड्रॉ रहा. वैसे विश्व कप में दोनों टीमों का सामना छह बार हुआ और सभी छह मैच नीदरलैंड ने जीते.

टूर्नामेंट में 1971 से अब तक भारत सिर्फ एक बार 1975 में खिताब जीत सका है और उसके बाद से उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 1994 में रहा जब टीम पांचवें स्थान पर रही थी, वहीं टूर्नामेंट की सबसे सफल टीमों में से एक पिछली उपविजेता नीदरलैंड ने तीन बार (1973, 1990 , 1998) में खिताब जीता है.

Monday, December 10, 2018

विपक्ष की बैठक में 17 दल के नेता पहुंचे, सपा-बसपा शामिल नहीं

विपक्षी दलों ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के खिलाफ महागठबंधन की कोशिशें तेज कर दी हैं। आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने सोमवार को विपक्षी दलों की बैठक बुलाई। इसमें 17 विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए। इस बैठक में बसपा और सपा से कोई नेता नहीं पहुंचा। हालांकि, मुलायम सिंह ने रविवार को कहा था कि वे इसमें शामिल होंगे।

नायडू 2019 लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ सभी क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने पर जोर दे रहे हैं। हाल ही में उन्होेंने कहा था कि जो पार्टियां देश को बचाना चाहती हैं, उन्हें साथ काम करना होगा। पहले यह बैठक 22 नवंबर को रखी गई थी, लेकिन 5 राज्यों में चुनाव के चलते इसे टाल दिया गया था।

बैठक का मुख्य एजेंडा गैर-भाजपा फ्रंट रहा। विपक्षी दलों की इस बैठक में शीतकालीन सत्र को लेकर भी चर्चा हुई। सभी दलों ने आगामी सत्र में किसान, बेरोजगारी, राफेल और महिला आरक्षण बिल को लेकर सरकार को घेरने की रणनीति बनाई। इसके अलावा बैठक में जीएसटी के प्रभाव और संविधान पर खतरे को लेकर भी चर्चा हुई।

सोनिया-मनमोहन भी शामिल हुए

शीतकालीन सत्र के एक दिन पहले बुलाई गई इस बैठक में सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी शामिल हुए। इसके अलावा बैठक में कांग्रेस नेता अहमद पटेल, एके एंटोनी, गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत भी मौजूद रहे।

17 दल के नेता रहे मौजूद

बैठक में सोनिया, राहुल के अलावा जेडीएस नेता एचडी देवगौड़ा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, प.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, नेशनल कांफ्रेंस प्रमुख फारूक अब्दुल्ला, माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी और भाकपा के महासचिव एस सुधाकर रेड्डी ने भी बैठक में हिस्सा लिया।

द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) अध्यक्ष एम के स्टालिन, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव, असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के बदरुद्दीन अजमल, झारखंड विकास मोर्चा के बाबुलाल मरांडी और लोकतांत्रिक जनता दल (एलजेडी) के नेता शरद यादव भी इस बैठक में शामिल हुए।

खुद को बचाने के लिए साथ आ रहीं विपक्षी पार्टियां- भाजपा

भाजपा ने कहा कि विपक्ष की यह बैठक केवल फोटो खिचाने के लिए है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि भ्रष्ट विपक्षी दल खुद को बचाने के लिए साथ आ रहे हैं। वहीं, भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि महागठबंधन को पहले प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तय करना चाहिए, इसके बाद उन्हें मोदी को हटाने के बारे में सोचना चाहिए।

Wednesday, December 5, 2018

वो सीटें जहां मीणा vs मीणा, ब्राह्मण vs ब्राह्मण और जाट vs जाट है लड़ाई

राजस्थान विधानसभा चुनाव प्रचार का बुधवार को आखिरी दिन है. राज्य में 7 दिसंबर को वोटिंग होगी. इस बार राजस्थान की सियासी लड़ाई जाति के भी इर्द-गिर्द लड़ी जा रही है. सूबे की राजनीति में जातिवाद सिर चढ़कर बोल रहा है.  प्रदेश की करीब 5 दर्जन विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां एक ही जाति के उम्मीदवारों के बीच मुकाबला है.

राज्य के प्रमुख दलों- कांग्रेस और बीजेपी ने कई सीटों पर समान जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस जीते या फिर बीजेपी विधायक उस जाति का बनना तय है.

राजस्थान का जातीय समीकरण

करीब सात करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले राजस्थान में अगर किसी जाति का 10 फीसदी वोट बैंक भी बन रहा है तो यह किसी की सरकार बनाने और गिराने के लिए काफी साबित होता है. राजस्थान में कुल 272 जातियां हैं. इनमें 51 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग (इसमें 91 जातियां हैं, जिनमें जाट 9 फीसदी, गुर्जर 5 फीसदी, माली 4 फीसदी), 18 फीसदी अनुसूचित जाति (59 उप-जातियां हैं जिनमें मेघावत 6 फीसदी, बैरवा 3 फीसदी), 13 फीसदी अनुसूचित जनजाति (12 उप-जातियां हैं जिनमें मीणा 7 फीसदी, भील 4 फीसदी) और 18 फीसदी अन्य (ब्राह्मण 7 फीसदी, राजपूत 6 फीसदी, वैश्य 4 फीसदी) से आते हैं.

लेकिन चुनावी नजरिए से देखा जाए तो ब्राह्मण, गुर्जर, मीणा, जाट और राजपूत समुदाय काफी अहम माने जाते हैं. सत्ता की चाबी किसके पास रहेगी, इसका फैसला करने में ये जातियां काफी मायने रखती हैं क्योंकि राजस्थान की जनसंख्या में करीब एक- तिहाई हिस्सा इन पांच जातियों का माना जाता है.

9 सीटों पर भील का मुकाबला भील से

प्रदेश की 9 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस और बीजेपी ने भील समुदाय के प्रत्याशी आमने-समाने मैदान में है. सागवाड़ा, चौरासी, घाटोल, गढ़ी, बांसवाड़ा, बागीडोरा, झाड़ौल, खैरवाड़ा और डूंगरपुर सीटों पर दोनों पार्टियों ने भील समुदाय के उम्मीदवार उतारे हैं. राजस्थान में भील 4 फीसदी हैं.
15 सीटों पर जाट प्रत्याशी आमने-सामने

राजस्थान की 15 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों ने जाट उम्मीदवार पर दांव लगाया है. डेगाना, नावां, ओसियां, बायतू, झुंझुनूं, किशनगढ़, सूरतगढ़, हनुमानगढ़, भादरा, लूणकरणसर, सादुलपुर, मंडावा, खंडेला, डीग-कुम्हेर सीट ऐसी हैं, जहां पर कांग्रेस और बीजेपी से के जाट उम्मीदवार आमने-सामने हैं. इसके अलावा मालपुरा में आरएलडी ने जाट उम्मीदवार उतारा है. आरएलडी राजस्थान में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है. राज्य में 9 फीसदी जाट समुदाय के लोग है.

इन सीटों पर मीणा बनाम मीणा

राज्य की 9 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मीणा बनाम मीणा है. जमवारामगढ़, लालसोट, बामनवास, प्रतापगढ़ , सलूंबर , सपोटरा, टोडाभीम, राजगढ़ और बस्सी विधानसभा सीट पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों ने मीणा समुदाय के प्रत्याशी पर दांव लगाया है. राज्य में मीणा समुदाय 7 फीसदी है. ये ये अनुसूचित जन जातीय के तहत आते हैं.

6 सीटों पर मेघवाल का मुकाबला मेघवाल

राजस्थान में दलित समुदाय में मेघवाल राजनीतिक रूप से सबसे ज्यादा प्रभावी है. राज्य की 6 विधानसभा सीटें हैं, जहां पर कांग्रेस और बीजेपी ने मेघवाल समुदाय के उम्मीदवार उतारे हैं. ये सीटे हैं- खाजूवाला, सुजानगढ़, धोद, जायल, भोपालगढ़ और चौहटन. राज्य में मेघवाल करीब 6 फीसदी हैं.

Tuesday, November 20, 2018

रैली रद्द करने को कांग्रेस ने दिया था 25 लाख का ऑफर

तेलंगाना में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले प्रचार जोरों पर चल रहा है. AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सोमवार को कांग्रेस पर बड़ा आरोप लगाया. यहां निर्मल में एक रैली को संबोधित करते हुए ओवैसी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने इस जगह रैली को कैंसिलकरने के लिए 25 लाख रुपये का ऑफर दिया था.

ओवैसी ने आरोप लगाया, ''कांग्रेस ने निर्मल में रैली रद्द करने के लिए उन्हें 25 लाख रुपये का ऑफर दिया था, लेकिन मैं उनमें से नहीं हूं जो बिक जाए.''

ओवैसी के इस आरोप पर कांग्रेस पार्टी की तरफ से भी जवाब आया है. कांग्रेस नेता मीम अफजल ने कहा कि ओवैसी और बीजेपी एक सिक्के के दो पहलू हैं, बीजेपी भी राहुल गांधी और कांग्रेस के खिलाफ ही बोलती है. ओवैसी सिर्फ बीजेपी की मदद करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आरोप लगाकर ओवैसी अपनी रैली को चर्चा में लाना चाहते हैं, ये सब निराधार है.

राहुल को भी निशाने पर लिया

आपको बता दें कि असदुद्दीन ओवैसी ने इसी रैली में राहुल गांधी पर बड़ा हमला करते हुए कहा कि एक तरफ कांग्रेस खुद को सेकुलर होने का दावा करती है तो दूसरी तरफ पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में एक प्रतिष्ठित वकील को बाबरी मस्जिद केस की सुनवाई लड़ने को मना कर दिया है.

आपको बता दें कि राज्य में सभी 119 विधानसभा सीटों के लिए एक चरण में 7 दिसंबर को मतदान होंगे और 11 दिसंबर को नतीजे आएंगे.

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को दो बार सुनवाई हुई. सुबह सबसे पहले कोर्ट लगते ही इस केस की सुनवाई शुरू हुई और चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के वकील फली नरीमन को कुछ दस्तावेज देते हुए पूछा कि जो रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपी गई, वो पहले ही सार्वजनिक कैसे हो गई.

कोर्ट ने नरीमन से ये पूछते हुए सख्त लहजे में नाराजगी जाहिर की और सुनवाई 29 नवंबर तक टालने का आदेश दिया. फली नरीमन ने भी इस पर अफसोस जताया और कहा कि उन्हें खुद इस बात की जानकारी नहीं है कि ये रिपोर्ट कैसे बाहर आई.

इसके बाद फली नरीमन ने कोर्ट से फिर अपील की और गोपनीय जवाब मीडिया रिपोर्ट में लीक होने पर सफाई दी. वरिष्ठ वकील नरीमन ने कोर्ट को बताया कि यह रिपोर्ट 17 नवंबर को छपी थी, जबकि कोर्ट ने आलोक वर्मा को अपना जवाब दाखिल करने के लिए 16 नवंबर को आदेश दिया था. हालांकि, चीफ जस्टिस उनके इस जवाब से संतुष्ट नजर नहीं आए और उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में सर्वोच्च गोपनीयता बरती जानी चाहिए.

भावुक हुए नरीमन

कोर्ट ने सख्त लहजे में नरीमन को सीवीसी और मीडिया रिपोर्ट की कॉपी लौटा दी. कोर्ट ने कहा कि संस्थानों का सम्मान और उनकी मर्यादा बनी रहनी चाहिए. चीफ जस्टिस ने यहां तक कहा कि मैं आपको कोई कागज दूं और मेरा स्टाफ बीच में ही उड़ा ले, ये क्या है. इसके अलावा कोर्ट ने सोमवार को दिए गए जवाब का लिफाफा भी नरीमन को लौटा दिया.

वरिष्ठ वकील फली नरीमन भी यहां भावकु दिखे और उन्होंने कहा, 'मैं पिछली सदी से कोर्ट में हूं. मुझे कोर्ट में 67 साल हो गए हैं, लेकिन ऐसी घटना कभी नहीं हुई. इतना अपसेट कभी नहीं हुआ.'

Sunday, November 18, 2018

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018: क्या 'आदिवासियों के हिन्दूकरण' से जीत रही बीजेपी?

समाजवादी जनपरिषद के उम्मीदवार फागराम पिछले तीन चुनावों से खड़े हो रहे हैं, लेकिन दो से पाँच हज़ार वोटों में ही सिमट कर रह जाते हैं.

फागराम इस बार होशंगाबाद ज़िले के सिवनी मालवा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में हैं. वो जानते हैं कि इस बार भी चुनाव नहीं जीतेंगे, लेकिन फिर भी लड़ रहे हैं. फागराम आदिवासी हैं और एक मोटरसाइकिल से अपने इलाक़े में प्रचार करने निकलते हैं.

एक तरफ़ जहां कांग्रेस और बीजेपी के करोड़पति उम्मीदवार हैं तो दूसरी तरफ़ एक झोले के साथ प्रचार पर निकलने वाले फागराम. फागराम आख़िर क्यों चुनाव लड़ते हैं?

वो कहते हैं, ''मैं इन्हें जिस हद तक चुनौती दे सकता हूं और आदिवासियों के बीच जितनी जागरुकता फैला सकता हूं उसे करने से बाज नहीं आऊंगा. भले कभी ना जीत पाऊं.''

मध्य प्रदेश में आदिवासी लगभग 23 फ़ीसदी हैं और इनके लिए 47 सीटें सुरक्षित हैं.

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अपने साथ हुए बलात्कार को छुपाना चाहते हैं रेप पीड़ित?
पिछले तीन विधानसभा चुनावों से आदिवासियों के लिए रिज़र्व सीटों पर बीजेपी जीत हासिल कर रही है.

आदिवासी सीटों का गणित
2013 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने आदिवासियों के लिए सुरक्षित 47 में से 31 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

2008 में भी 47 में से 31 आदिवासी सीटें बीजेपी की झोली में गईं. 2003 में परिसीमन से पहले आदिवासियों के लिए 41 सीटें रिज़र्व थीं और बीजेपी ने 37 सीटें जीती थीं.

1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण हो रहा था, लेकिन दिलचस्प है कि मध्य प्रदेश के 1993 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें कम हो गई थीं.

1990 में मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कुल 320 में से पूर्ण बहुमत से भी ज़्यादा 220 सीटों पर जीत मिली थी जो 1993 में 116 पर आकर सिमट गई.

1993 में आदिवासियों के लिए रिज़र्व सीटों पर बीजेपी के महज़ तीन प्रत्याशी ही जीत पाए थे. 1993 में ही दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने और 2003 तक रहे.

आख़िर बीजेपी ने आदिवासियों के लिए ऐसा क्या कर दिया है कि लगभग सुरक्षित सीटें पिछले तीन चुनावों से उसी की झोली में जा रही हैं? ऐसा तब है जब आदिवासी आज भी वन अधिकार के लिए लड़ रहे हैं. शिक्षा और रोज़गार के मामले में पिछड़े हुए हैं और बड़े बांधों के कारण आज भी विस्थापन का दंश झेल रहे हैं.

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शिवराज सिंह चौहान
बीजेपी की जीत के कारण
सिवली मालवा के ही केसला गांव के इक़बाल बालू जेएनयू से पीएचडी कर रहे हैं.

फागराम भी इसी गांव के हैं. इक़बाल बीजेपी की जीत के कई कारण बताते हैं.

वो कहते हैं, ''पिछले तीन चुनावों में कांग्रेस ज़मीनी स्तर पर बुरी तरह से बिखर गई है. आदिवासियों की एक पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी बनी भी तो वो जल्द ही राजनीतिक सौदेबाज़ी में लिप्त हो गई. गोंडवाना गणतंत्र के नाम से ही ऐसा लग रहा था कि यह केवल गोंड आदिवासियों के लिए है जबकि मध्य प्रदेश में भील आदिवासी भी भारी तादाद में हैं.''

इक़बाल कहते हैं, ''इस दौरान आरएसएस के संगठन वनवासी कल्याण परिषद ने भी आदिवासियों के बीच अपने एजेंडों को फैलाया. वनवासी कल्याण परिषद ने कई धार्मिक अनुष्ठानों का बड़े पैमाने पर आयोजन कराया. इसमें सबरी के किरदार को इन्होंने आगे किया. इन्होंने बताया कि कैसे सबरी ने राम को जूठा बेर खिलाया था और राम ने बेर प्रेमवश खाए थे. ये सबरी कुंभ का आयोजन करने लगे. आदिवासियों को दूसरे राज्यों में धार्मिक यात्राओं पर भेजने लगे. इन्होंने हाशिए के आदिवासी इलाक़ों में छात्रावास और पुस्तकालय खोले. पुस्तकालय में मिलने वाली किताबें हिन्दूवादी विचारों की ओर प्रेरित करने वाली होती हैं और छात्रावास में जो छात्र रहते हैं, आरएसएस उन्हें अपने हिसाब से प्रशिक्षित करता है.''

इक़बाल कहते हैं कि मसला केवल आरएसएस का ही नहीं है बल्कि मीडिया ने भी सवर्ण मूल्यों और हिन्दू रीति-रिवाज को स्थापित करने में अपनी भूमिका अदा की है. मध्य प्रदेश में आदिवासी इलाक़ों में काम करने वाले अनुराग मोदी भी इक़बाल से सहमत दिखते हैं.

आरएसएस के लोग आदिवासियों को वनवासी कहना पसंद करते हैं. 2002 में जब बिहार का विभाजन हुआ था तो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार इसका नाम वनांचल रखना चाहती थी न कि झारखंड. आरएसएस का कहना है कि जो भी वन में रहते हैं सब वनवासी हैं.

Friday, November 16, 2018

रणवीर की राशि कुंभ और दीपिका की तुला, जानें कैसी रहेगी जोड़ी?

रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण की इटली के लेक कोमो में कोंकणी और सिंधी रिवाज से शादी हो चुकी है। रणवीर की राशि कुंभ और दीपिका की राशि तुला है। रणवीर का जन्म अंक 6 है। दीपिका का जन्म अंक 5 है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित मनीष शर्मा के बता रहे हैं कि ज्योतिष के आधार पर दीपिका और रणवीर का वैवाहिक जीवन कैसा हो सकता है...

कैसा रहेगा इनका वैवाहिक जीवन
रणवीर सिंह का जन्म 6 जुलाई 1985 को हुआ था और दीपिका का जन्म 5 जनवरी 1986 को हुआ था। जन्म के समय चंद्र की स्थिति के आधार पर रणवीर की राशि कुंभ है और दीपिका की राशि तुला है।

पं. शर्मा बताते हैं- ज्योतिष के अनुसार इन राशियों में ज्यादा समानता नहीं बनती है। आमतौर पर ये जोड़ी सामान्य मानी जाती है। कुंभ का स्वामी शनि और तुला राशि का स्वामी शुक्र मित्र है। दोनों राशियां विपरित स्वभाव की हैं।

‘‘दीपिका की कुंडली में प्रेम विवाह का योग था। इन दोनों की कुंडली में गुरु नीच का है। रणवीर सिंह की कुंडली में शनि उच्च का है। विवाह के बाद शुक्र का बल मिलने से उनके करियर में भाग्य का साथ मिलेगा।’’

‘‘दीपिका को इस विवाह की वजह से करियर में कोई ज्यादा फायदा मिलने की संभावना नहीं है। वे अपनी मेहनत के बल पर ही सफलता हासिल करेंगी। इनका वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा। भविष्य में किसी प्रकार का कोई विवाद होने के योग नहीं हैं।’’

क्या कहता है अंक ज्योतिष
पं. शर्मा बताते हैं- रणवीर का जन्म अंक 6 है और दीपिका का जन्म अंक 5 है। इन अंकों के लोगों को अपने क्रोध पर काबू रखना चाहिए। अन्यथा वैवाहिक जीवन में परेशानियां बढ़ सकती हैं।

‘‘अंक 5 का स्वामी ग्रह बुध है और अंक 6 का स्वामी ग्रह शुक्र है। ये दोनों ही ग्रह इनके क्षेत्र से संबंधित हैं। बुध प्रबंधन और वाणी का कारक है, जबकि शुक्र वैभव और ग्लैमर से संबंधित है। इस वजह से इनका विवाह इनके कार्यक्षेत्र के लिए फायदेमंद हो सकता है।’’

Sunday, November 11, 2018

कहानी पहले विश्वयुद्ध के जांबाज़ भारतीय नायकों की

पहले विश्वयुद्ध में क़रीब 15 लाख भारतीय सैनिकों ने हिस्सा लिया था, जिसमें से 74 हज़ार की मौत हो गई थी.

पहले विश्वयुद्ध को 'सभी युद्धों को ख़त्म करने वाला युद्ध' कहा गया और वह 11 नवंबर 1918 को एक समझौते के साथ ख़त्म हुआ. इस बात को सौ साल बीत चुके हैं. लेकिन अब भी उस युद्ध में भारतीय सैनिकों से जुड़ी कई असाधारण कहानियां अब तक अनकही हैं.

इतिहासकार जॉर्ज मॉर्टन-जैक इनमें से कुछ कहानियां बताते हैं.

अर्सला ख़ान
1914 से 1918 तक भारतीय सैन्य टुकड़ियां युद्ध में शामिल हुईं. भारतीय सैनिकों की संख्या ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और कैरेबियन की सेना के कुल योग से भी चार गुना थी.

57वीं वाइल्ड्स राइफ़ल्स के अर्सला ख़ान पहले विश्व युद्ध के लिए जाने वाले पहले भारतीय थे.

वह 22 अक्टूबर 1914 की रात पश्चिमी मोर्चे पर बेल्जियम में प्रवेश करने वाली पहली भारतीय कंपनी के अगुवा थे.

अर्सला ख़ान 1918 तक फ्रांस, मिस्र, जर्मन ईस्ट अफ्रीका और भारत में लड़ाइयां लड़ते रहे. 1919 की गर्मियों में लंदन में हुई आधिकारिक विजय परेड में उन्होंने अपनी रेजीमेंट का प्रतिनिधित्व किया.

हज़ारों अन्य युद्धवीरों के साथ उन्होंने शहर के महानतम युद्ध स्मारक द सेनोटाफ तक मार्च किया और देखने वाली कई आंखें आंसुओं से भीग गईं.

अमर सिंह
विश्वयुद्ध के बारे में कई आख्यान, लेख और किताबें मशहूर हैं, लेकिन एक लेखक भारतीय सेना में भी था जिसने संभवत: एक असाधारण चीज़ लिखी. कैप्टन अमर सिंह ने जो लिखा वह संभवत: दुनिया की सबसे लंबी डायरी होगी.

1890 के दशक से लेकर 1940 के दशक तक 89 संस्करणों में उन्होंने युद्ध में अपने अनुभव दर्ज किए. इसमें भारत से लेकर पश्चिमी मोर्चे, ब्रिटेन, इराक़ मोर्चे और भूमध्यसागर में जर्मन यू-बोट्स से जूझने के तजुर्बे शामिल हैं.

1917 में सिंह की पत्नी रसल ने राजस्थान स्थित अपने घर में बेटी रतन को जन्म दिया. वह इस दंपती की छठी और पहली ऐसी संतान थी जो पूरी तरह स्वस्थ पैदा हुई थी. यहां से अमर सिंह के परिवार को लगा कि युद्ध वाक़ई ख़त्म हो गया है और अब उनके परिवार के लिए ख़ुशियों के दिन हैं.