Friday, April 19, 2019

तीसरा चरण: 21% दागी, 25% करोड़पति उम्मीदवार; बीजापुर के प्रत्याशी ने 9 रु की संपत्ति बताई

नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 15 राज्यों की 116 सीटों पर 340 यानी 21% दागी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। इन पर कोई न कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज है। वहीं, 230 यानी 14% प्रत्यााशी ऐसे हैं जो गंभीर अपराध के आरोपी हैं। वहीं, इस चरण में 392 करोड़पति उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। यह बात एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट में सामने आई है। एडीआर ने तीसरे चरण में चुनाव लड़ रहे 1612 में से 1594 प्रत्याशियों के हलफनामों का विश्लेषण किया है। तीसरे चरण में 23 अप्रैल को मतदान होना है।

29 प्रत्याशियों के खिलाफ महिलाओं से जुड़े अपराध के मामले दर्ज हैं। इनमें दुष्कर्म, यौन उत्पीड़न और महिलाओं के प्रति क्रूरता जैसे आरोप शामिल हैं। 14 उम्मीदवार ऐसे हैं, जिन्होंने हलफनामे में यह घोषित किया है कि वे आपराधिक मामलों में दोषी पाए जा चुके हैं। 13 उम्मीदवारों के खिलाफ हत्या की धारा में मुकदमा चल रहा है। 30 प्रत्याशियों पर हत्या के प्रयास का आरोप है। 14 उम्मीदवार फिरौती के लिए अपहरण कराने के आरोपी हैं। 26 प्रत्याशियों के खिलाफ नफरतभरे बयान देने का मामला लंबित है।

392 उम्मीदवार ऐसे जिनकी संपत्ति 1 करोड़ से ज्यादा
एडीआर ने जिन 1594 उम्मीदवारों के हलफनामों का विश्लेषण किया है, उनमें 392 यानी 25% प्रत्याशियों की संपत्ति 1 करोड़ से ज्यादा है। कांग्रेस के 90 उम्मीदवारों में 74 यानी 82%, भाजपा के 97 में से 81 यानी 84% उम्मीदवारों की संपत्ति 1 करोड़ से अधिक है। वहीं, सपा के 10 में से 9, बसपा के 12 और शिवसेना के 7 प्रत्याशियों की संपत्ति 1 करोड़ से ज्यादा है। तीसरे चरण में उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 2.95 करोड़ रुपए है।

प्रियंका चतुर्वेदी ने एक पत्रकार के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए यह बात कही है. दरअसल, उस पत्रकार ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमिटी के एक नोटिस को ट्वीट किया था.

इस नोटिस में कहा गया था कि मथुरा में कथित तौर पर प्रियंका चतुर्वेदी के साथ दुर्व्यवहार करने वाले कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की अनुशासनात्मक कार्यवाही को निरस्त किया जाता है.

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमिटी की ओर से जारी किए गए नोटिस में लिखा है कि बीते दिनों मथुरा में कांग्रेस कमिटी की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी की रफ़ाल सौदे पर प्रेस कॉन्फ़्रेस के दौरान मथुरा ज़िलाध्यक्ष, उपाध्यक्ष समेत आठ लोगों ने अमर्यादित व्यवहार किया था. इसके बाद उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी.

नोटिस में लिखा गया है कि इस पर इन लोगों ने माफ़ी मांग ली जिसके बाद कांग्रेस महासचिव और पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया के कहने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई को निरस्त कर दिया गया है.

बीबीसी से बातचीत में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमिटी के उपाध्यक्ष आर.पी. त्रिपाठी ने कहा कि दुर्व्यवहार करने वाले कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने माफ़ी मांग ली थी जिसके बाद उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई को निरस्त कर दिया गया.

उन्होंने कहा कि अगर कोई माफ़ी मांगता है तो उसे माफ़ भी कर दिया जाना चाहिए और इस मसले को ज़्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए.

बीते साल सितंबर में प्रियंका चतुर्वेदी मथुरा गई थीं जहां उन्होंने रफ़ाल सौदे पर प्रेस कॉन्फ़्रेंस की. प्रियंका मूलतः मथुरा से ही हैं.

उन्होंने इस दौरान स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं की ओर से दुर्व्यवहार किए जाने की शिकायत शीर्ष नेतृत्व से की जिसके बाद ज़िलाध्यक्ष अशोक सिंह चकलेश्वर और महासचिव उमेश पंडित समेत आठ लोगों को छह साल के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया था.

पार्टी ने अब इन कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई को निरस्त कर दिया है इस पर उमेश पंडित का कहना है कि उन्हें कभी अपने ख़िलाफ़ हुई कार्रवाई के बारे में मालूम ही नहीं था, वह तो तब भी कांग्रेस के लिए काम कर रहे थे और आज भी कर रहे हैं.

उमेश पंडित ने सितंबर में हुई घटना पर बीबीसी से कहा, "जब इस घटना के होने की बात कही जा रही है उस समय मैं अपने पिता के पास अस्पताल में था लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसा कुछ हुआ भी नहीं था. अगर ऐसे हुआ था तो उन्होंने पुलिस को शिकायत क्यों नहीं की. यह सब पूर्व विधायक प्रदीप माथुर के साथ उनकी बातचीत के बाद हुआ था क्योंकि वह हमसे बात ही नहीं करती थीं."

प्रियंका चतुर्वेदी ने अपने ट्वीट में कहा है कि ख़ून-पसीना देने वाले उन जैसे कार्यकर्ताओं की जगह बदमाशों को तरजीह दी जा रही है, इस पर उमेश पंडित कहते हैं, "हमें गुंडा कैसे कह सकती हैं वो. हम वो लोग हैं जिनके घर में आज़ाद हिंद फ़ौज की स्थापना हुई थी. हम 27 साल से कांग्रेस में हैं और कांग्रेस में रहेंगे. ज़िलाध्यक्ष अशोक चकलेश्वर तीन बार के सांसद रहे चकलेश्वर सिंह के पुत्र हैं. उन्होंने मथुरा में रिफ़ाइनरी लगवाई और इंदिरा गांधी जब भी मथुरा आती थीं उनके यहां रुकती थीं. तो वह कैसे हमें बदमाश कह सकती हैं."

Monday, April 15, 2019

कैसे हुआ इसराइल का चंद्र अभियान नाकाम

इसराइल का पहला चंद्र अभियान नाकाम हो गया है. चंद्रमा की सतह पर उतरते ही उसका अंतरिक्ष यान बेरेशीट क्रैश हो गया.

बेरेशीट के इंजन में ख़राबी आ गई थी और लैंड करते सयम रोवर का ब्रेकिंग सिस्टम विफल हो गया.

इस मिशन का मुख्य लक्ष्य तस्वीरें लेना और कुछ प्रयोगों को अंजाम देना था.

इसराइल इसकी सफलता के साथ ही चांद पर उतरने वाला चौथा देश बनना चाहता था.

अब तक रूस, अमरीका और चीन की सरकारी एजेंसियों ने चांद पर अपने यान उतारने में सफलता पाई हैं.

इस मिशन के प्रमुख मॉरिस कान ने कहा, "हम कामयाब नहीं हुए, लेकिन निश्चित रूप से हमने कोशिशें कीं."

उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि हम जहां तक पहुंचे उसे हासिल करने की उपलब्धि भी वास्तव में ज़बरदस्त है, मुझे लगता है कि हम इस पर गर्व कर सकते हैं."

तेल अवीव के नियंत्रण कक्ष से इस पर नज़र बनाए हुए प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा, "यदि पहली बार में सफलता नहीं मिलती है तो आपको दोबारा कोशिश करनी चाहिए."

चंद्रमा पर पहुंचने के लिए सात हफ़्ते की यात्रा के बाद, मानवरहित अंतरिक्ष यान चांद की सतह से 15 किलोमीटर दूर इसकी अंतिम कक्षा में पहुंचा.

इस दौरान कमांड सेंटर में तनाव अधिक था क्योंकि अंतरिक्ष यान से संपर्क नहीं हो पा रहा था. इसी दौरान इसराइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज के अंतरिक्ष विभाग के प्रमुख ने घोषणा की कि अंतरिक्ष यान में ख़राबी आ गई है.

उन्होंने कहा, "दुर्भाग्य से हम चांद की सतह पर सफलतापूर्वक उतरने में कामयाब नहीं हो सके हैं."

उन्होंने बताया, "हम इंजन को स्टार्ट करने के लिए अंतरिक्ष यान को रीसेट कर रहे हैं."

कुछ सेकेंड के बाद इंजन स्टार्ट हो गया तो कमांड सेंटर में मौजूद लोगों ने तालियों से इसका स्वागत किया लेकिन कुछ ही पल बाद अंतरिक्ष यान से संपर्क टूट गया. इसके साथ ही यह मिशन समाप्त हो गया.

अंतरिक्ष यान अमरीका के फ्लोरिडा राज्य में स्थित केप केनेवरल एयर फोर्स स्टेशन से प्रक्षेपित किया गया था.

यह 'स्पेसआईएल' और 'इसराइल अंतरिक्ष एजेंसी' की संयुक्त भागीदारी से शुरू किया गया प्रोजेक्ट था जिस पर 100 मिलियन डॉलर की लागत आई.

आज जब चांद पर पहुंचने में केवल कुछ दिनों का समय लगता है वहीं इस अंतरिक्ष यान को यहां तक पहुंचने में तीन हफ़्ते का समय लगा. आखिर इसकी वजह क्या थी.

22 फ़रवरी को बेरेशीट की अंतरिक्ष उड़ान शुरू होने से 4 अप्रैल को चांद के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश तक इसने कई बार पृथ्वी के चक्कर लगाए.

पृथ्वी से चंद्रमा तक औसत दूरी क़रीब 3 लाख 80 हज़ार किलोमीटर की है. लेकिन अपनी यात्रा के दौरान बेरेशीट ने इससे 15 गुना अधिक दूरी तय की.

अब इसके पीछे वजह इसकी लागत को कम करने की थी. इसे सीधे-सीधे चांद पर भेजा जा सकता था लेकिन बेरेशीट को स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट से प्रक्षेपित करने के दौरान इसके साथ एक संचार उपग्रह और एक प्रायोगिक विमान भी भेजा गया था.

निश्चित ही अंतरिक्ष की यात्रा में रॉकेट शेयर करने से इसकी लागत कम हो गई- लेकिन साथ ही इस अंतरिक्ष यान को कहीं जटिल और मुश्किल रस्ते से गुजरना पड़ा.

इसराइली अंतरिक्ष यान का चांद पर सकुशल उतरना सबसे चुनौतीपूर्ण काम था.

इसका इंजन ब्रिटेन में बना था. जिसे नम्मो (Nammo) ने वेस्टकोट, बकिंघमशायर में विकसित किया था.

1.5 मीटर के इस अंतरिक्ष यान को चांद पर उतरने के दौरान लगातार अपनी रफ़्तार कम करनी थी, इसमें ब्रेक का सबसे बड़ा किरदार था ताकि यह अंतरिक्ष यान सकुशल चांद पर उतर जाए.

लैंडिंग से पहले नम्मो के सीनियर प्रपल्शन इंजीनियर रॉब वेस्कॉट ने कहा, "हमने इस तरह के एप्लिकेशन में इंजन का उपयोग कभी नहीं किया है."

उन्होंने कहा कि यह सबसे बड़ी चुनौती होगी "चांद पर उतरने के दौरान इसके इंजन को चालू रखना होगा और यह बहुत गरम हो जाएगा. फिर इसे थोड़े समय के लिए बंद करना होगा और जब यह पूरी तरह से गरम ही रहेगा तो इसे दोबारा चालू करना होगा, बहुत सटीक रूप से ताकि यह धीमी गति में चांद पर लैंड कर सके."

ओपन यूनिवर्सिटी में अंतरिक्ष विज्ञान की प्रोफेसर मोनिका ग्रैडी कहती हैं, "यह वास्तव में लैंडिंग साइट को बहुत करीब से देखने जैसा है. इससे प्राप्त डेटा हमें यह जानने में मदद करेंगे कि चांद की चुंबकीय माप वहां के भूविज्ञान और भूलोग के साथ कैसे फिट होते हैं, जो वास्तव में यह समझना है कि चांद बना कैसे था."

उन दो कामयाबियों के क़रीब 50 साल बाद इस साल 3 जनवरी, 2019 को चांद पर अपने अंतरिक्ष यान चेंज-4 को उतार कर चीन ऐसा करने वाला तीसरा देश बना है.

Monday, April 8, 2019

विवेचना: 1977, जब कोई पार्टी नहीं, 'जनता' लड़ रही थी चुनाव

1 मार्च, 1977 को दिल्ली के बोट क्लब में होने वाली चुनावी रैली में मौजूद सरकारी कर्मचारी इंदिरा गांधी से बहुत ख़फ़ा थे.

नई दिल्ली से कांग्रेस प्रत्याशी शशि भूषण ने जब नारा लगाया, 'बोलो इंदिराजी की जय' तो भीड़ की तरफ़ से एक आवाज़ भी नहीं आई. शशि भूषण को लगा कि शायद माइक नहीं काम कर रहे हैं.

उन्होंने जब माइक को खड़खड़ाया तो वहाँ मौजूद लोग हँसने लगे. दिल्ली की जनता ने प्रधानमंत्री के लिए इस तरह की उपेक्षा पहले कभी नहीं दिखाई थी. इंदिरा गांधी का भाषण समाप्त होने से पहले ही लोग वहाँ से उठना शुरू हो गए थे.

अचानक चुनाव ने विपक्ष को किया अचंभित
1977 में लोकसभा का कार्यकाल नवंबर में ख़त्म होने वाला था. लेकिन इंदिरा गांधी ने अचानक 18 जनवरी को चुनाव की घोषणा करके देशवासियों और विपक्ष दोनों को अचंभे में डाल दिया था.

इंदिरा गांधी सेंटर ऑफ़ आर्ट्स के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय बताते हैं, "इस घोषणा से 16-17 दिन पहले मैं दिल्ली में था. उस समय जितने भी बड़े नेता थे, उनसे मैं मिला था. चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और चंद्रशेखर सब का मानना था कि इंदिरा गाँधी विपक्ष के लोगों का मनोबल गिरा रही थीं. वो उन्हें या तो अपनी तरफ़ खींच रही थीं या तोड़ रही थीं और उनसे लेन-देन की बातचीत चल रही थी. इनमें से कोई भी नहीं समझता था कि चुनाव होंगे."

"जब चुनाव की घोषणा हो गई तो कोई भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं था. मैंने राज नारायण के भाई से, जो हाल ही में उनसे जेल में मिलकर आए थे, पूछा कि उनकी क्या योजना है? उन्होंने जेल से ही कहलवाया था कि मैं रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ूंगा. जॉर्ज फ़र्नान्डिस और अटल बिहारी वाजपेयी बड़े नेता हैं, वही जाकर वहाँ से चुनाव लड़ें. जब मैंने सुंदर सिंह भंडारी जैसे नेता से पूछा कि कैसी तैयारी है तो वो बहुत निराश दिखाई दे रहे थे. उनका कहना था कि न तो हमारे पास चुनाव लड़ने के लिए पैसा आएगा और न ही कार्यकर्ता पूरी हिम्मत से हमारे लिए काम करेंगे क्योंकि तब तक इमरजेंसी हटाई नहीं गई थी."

इंदिरा गांधी ने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान 40 हज़ार किलोमीटर की यात्रा की. जम्मू कश्मीर और सिक्किम को छोड़कर वो हर राज्य में गईं और 244 चुनाव सभाओं को संबोधित किया. लेकिन उन्हें ये अंदाज़ा लग गया था कि इस बार जनता उनके साथ नहीं है.

जगजीवन राम और हेमवतीनंदन बहुगुणा के कांग्रेस से इस्तीफ़ा देने के बाद जो जनता लहर बनी, उसने इंदिरा गाँधी को सत्ता से हटा कर ही दम लिया.

राम बहादुर राय बताते हैं, "वो पहला चुनाव था और आगे शायद हो या न हो, जिसमें पार्टी पीछे हो गई थी, नेता पीछे हो गए थे, सिर्फ़ जनता चुनाव लड़ रही थी. उस ज़माने में चंद्रशेखर की जब कोई चुनावी सभा होती थी तो एक आदमी चादर लेकर घूम जाता था और 10-15 लाख रुपए इकट्ठा हो जाते थे."

"इस बात की सूचना मात्र से कि बाहर से कोई शख़्स जनता पार्टी का प्रचार करने आया है, दस- पंद्रह हज़ार लोगों की भीड़ जमा हो जाती थी, चाहे लोग उसे जानते हों या न हों. चंद्रभानु गुप्त ने एक बार मुझसे पूछा कि अल्मोड़ा कोई जाने के लिए तैयार नहीं हो रहा है. वहाँ से डाक्टर मुरली मनोहर जोशी चुनाव लड़ रहे हैं. क्या तुम वहाँ जाओगे ? मैं वहाँ पहुंच गया. आप यकीन नहीं करेंगे कि पिथौरागढ़ में सिर्फ़ 10 मिनट तक रिक्शे पर प्रचार हुआ कि जनता पार्टी की एक सभा होने वाली है. वो पिथौरागढ़ के इतिहास की सबसे बड़ी सभा थी."

उत्तर भारत के हर कोने में इंदिरा गांधी की चुनावी सभा में जनता की उदासीनता साफ़ दिखाई दे रही थी. डी.आर मनकेकर और कमला मनकेकर अपनी किताब 'डिक्लाइन एंड फॉल ऑफ़ इंदिरा गांधी' में जालंधर की एक चुनावी सभा का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं, "इंदिरा गांधी ने 11 मार्च को जालंधर में जो चुनावी सभा की थी वो लोगों की नज़र में कांग्रेस की स्थिति का सही पैमाना था. इस बैठक को सफल बनाने के लिए राज्य सरकार ने सैकड़ों बसों का इस्तेमाल किया था, ताकि आसपास के इलाक़ों से ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को इस रैली में लाया जा सके."

"सभा का समय भी शाम साढ़े सात से बदलकर सूर्यास्त कर दिया गया था, ताकि लोगों को वापस घर पहुंचने में देरी न हो. मुफ़्त की सवारी और आधे दिन की छुट्टी का फ़ायदा उठाते हुए लोग सभा में आए ज़रूर, लेकिन उनका मन खिन्न था."

"जब कांग्रेस के वक्ताओं ने जगजीवन राम पर हमला बोला और ये कहा कि अकालियों को उनके अनुरोध पर ही गिरफ़्तार किया गया था, तो भीड़ भड़क गई. सभा की समाप्ति पर सभी लोगों ने कांग्रेस पार्टी द्वारा दी गई मुफ़्त की सवारी ली लेकिन रास्ते भर वो जनता पार्टी ज़िंदाबाद के नारे लगाते गए."

जगजीवन राम के इस्तीफ़े के बाद विपक्ष ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक ज़बरदस्त रैली की थी जिसके बारे में कहा जाता है कि दिल्ली के इतिहास में किसी सभा में इतना बड़ा जन सैलाब कभी नहीं देखा गया.

मशहूर पत्रकार कूमी कपूर अपनी किताब 'द इमरजेंसी - अ पर्सनल हिस्ट्री ' में लिखती हैं, "भीड़ को दूर रखने के लिए तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल ने दूरदर्शन से कहकर रविवार की फ़ीचर फ़िल्म का समय चार बजे से बदलवाकर पाँच बजे करवा दिया था."

"पूर्व- निर्धारित फ़िल्म 'वक़्त' के स्थान पर उन्होंने 1973 की सबसे बड़ी फ़िल्म ब्लॉकबस्टर 'बॉबी' दिखाने का फ़ैसला किया था. एक बार फिर रामलीला मैदान के आसपास किसी बस को आने नहीं दिया गया था और लोगों को सभास्थल तक पहुंचने के लिए एक किलोमीटर तक चलना पड़ा था. जेपी और जगजीवन राम 'बॉबी' से कहीं बड़े आकर्षण सिद्ध हुए."

"अटल बिहारी वाजपेयी की दत्तक पुत्री नमिता भट्टाचार्य ने मुझे बताया था कि जब वो सभास्थल की तरफ़ जा रही थीं तो उन्हें कुछ दबी हुई सी आवाज़ सुनाई दी. हमने टैक्सी ड्राइवर से पूछा, 'ये किसकी आवाज़ है ?' उसका जवाब था, 'ये लोगों के क़दमों की आवाज़ है.' जब हम तिलक मार्ग पहुंचे तो वो लोगों से खचाखच भरा हुआ था. हमें वहाँ अपनी टैक्सी छोड़नी पड़ी और वहाँ से रामलीला मैदान हम पैदल गए."

इससे पहले रामलीला मैदान में एक और सभा हुई थी जिसे अटल बिहारी वाजपेयी ने संबोधित किया था. उस सभा में मशहूर पत्रकार वीरेंद्र कपूर भी मौजूद थे.

कपूर बताते हैं, "उस सभा में क़रीब-क़रीब आधी दिल्ली उमड़ पड़ी थी. दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र लोगों के जूते पॉलिश कर जनता पार्टी के लिए पैसे जमा कर रहे थे. साढ़े नौ बजे अटलजी बोलने के लिए खड़े हुए. उन्होंने थोड़ा 'पॉज़' लिया और आँखें बंद करके कहा, 'बाद मुद्दत के मिले हैं दीवाने.' भीड़ पागल होकर ताली बजाने लगी. उन्होंने फिर आँखें बंद की और लंबे 'पॉज़' के बाद कहा, 'कहने सुनने को बहोत हैं अफ़साने.' इस बार और लंबी तालियाँ बजीं. उसके बाद उन्होंने उसी समय स्वरचित दो लाइनें जोड़ीं -

भीड़ ने पूरे दो मिनट तक ताली बजाई. वाजपेयी का भाषण समाप्त होने और नेताओं के वापस चले जाने के काफ़ी देर बाद तक भीड़ वहाँ रुकी रही मानो उन्होंने सामूहिक रूप से ये तय कर लिया हो कि उन्हें ताली बजाने के अलावा इनके लिए कुछ और भी करना है. मीटिंग के बाद कनॉट-प्लेस तक लोग पैदल चले आ रहे थे. उस रात मुझे पहली बार अंदाज़ा हुआ कि इंदिरा गाँधी चुनाव हार भी सकती हैं."

Friday, April 5, 2019

अमेरिका की वजह से अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा कचरा, कुल कचरे का सिर्फ 1.07% भारत का

नई दिल्ली. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भारत के एंटी-सैटेलाइट हथियार के परीक्षण से निकले मलबे को खतरनाक बताया था। नासा प्रमुख जिम ब्राइडनस्टाइन का कहना था कि भारत के इस परीक्षण से 400 टुकड़े हुए जो अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहे हैं। यह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) और उसमें रह रहे एस्ट्रोनोट्स के लिए खतरा है। हालांकि, नासा के खुद के आंकड़ों के मुताबिक, अंतरिक्ष में बाकी देशों के मुकाबले अमेरिका का कचरा सबसे ज्यादा है। वहीं, भारत ने कहा है कि ए-सैट के परीक्षण से जो टुकड़े अंतरिक्ष में मौजूद हैं, वे कुछ ही समय में नष्ट होकर धरती पर आ गिरेंगे।

अब अमेरिका ने कहा- मलबा वायुमंडल में आते ही जल जाएगा
भारत के परीक्षण के 9 दिन बाद अमेरिकी रक्षा विभाग (पेंटागन) ने मलबे को लेकर संभावना जताई है कि वह वायुमंडल में ही जलकर नष्ट हो जाएगा। डीआरडीओ ने 27 मार्च को एंटी-सैटेलाइट मिसाइल (ए-सैट) का परीक्षण किया था।

अंतरिक्ष में 19,173 टुकड़े, इनमें से 34% अमेरिका के

अंतरिक्ष में मौजूद कचरे को नासा अपने हिसाब से मॉनिटर करता है। नासा की नवंबर 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, अंतरिक्ष में 19,173 टुकड़े घूम रहे हैं, जिनमें से 34% अमेरिका और सिर्फ 1.07% भारत के हैं। अंतरिक्ष में अमेरिका के टुकड़े 6,401 घूम रहे हैं, जबकि भारत के सिर्फ 206 हैं।

नासा के मुताबिक, अंतरिक्ष में भारत के 89 टुकड़े पेलोड और 117 टुकड़े रॉकेट के हैं। भारत से करीब 20 गुना ज्यादा कचरा चीन का है। उसके 3,987 टुकड़े अंतरिक्ष में हैं।

भारत के एंटी-सैटेलाइट परीक्षण के बाद नासा का कहना है कि इससे 400 टुकड़े बिखर गए। इस हिसाब से मानें तो अभी अंतरिक्ष में भारत के 606 टुकड़े मौजूद होंगे। उसके बाद भी ये कुल कचरे का सिर्फ 3.12% हैं।

10 साल में अमेरिका के 2,142 टुकड़े बढ़े, भारत के सिर्फ 62 बढ़े
नासा के आंकड़ों के मुताबिक, 10 साल में अंतरिक्ष में करीब 50% कचरा बढ़ा है। सितंबर 2008 तक अंतरिक्ष में 12,851 टुकड़े मौजूद थे, जिनकी संख्या नवंबर 2018 तक बढ़कर 19,173 पहुंच गई। इस दौरान अंतरिक्ष में अमेरिका की गतिविधियों से जहां 2,142 टुकड़े बढ़े, वहीं भारत से सिर्फ 62 टुकड़े बढ़े। सितंबर 2008 तक अंतरिक्ष में अमेरिका के 4,259 और भारत के 144 टुकड़े थे।

चीन ने 2007 में परीक्षण किया था, इससे करीब 2,500 से ज्यादा टुकड़े बिखरे थे
चीन ने सबसे पहले 2007 में केटी-1 रॉकेट से एंटी-सैटेलाइट मिसाइल का परीक्षण किया था। इससे चीन ने अपने मौसम उपग्रह फेंग युन 1-सी को धरती से 800 किमी की ऊंचाई पर लो-अर्थ ऑर्बिट में मार गिराया था। इस परीक्षण के बाद 2,500 से ज्यादा टुकड़े बिखर गए थे। नासा के आंकड़े भी यही कहते हैं। नासा के मुताबिक, सितंबर 2006 तक अंतरिक्ष में चीन के 376 टुकड़े मौजूद थे, जिनकी संख्या अक्टूबर 2007 तक बढ़कर 2,631 हो गई। वहीं, सितंबर 2008 तक अंतरिक्ष में चीन के 2,774 टुकड़े थे।

भास्कर नॉलेज: क्या होता है अंतरिक्ष का कचरा और इसका क्या होता है?

अंतरिक्ष में जो कचरा होता है, उसे 'स्पेस डेब्रिस' या 'ऑर्बिटल डेब्रिस' कहते हैं। ये कचरा अंतरिक्ष में इंसानों की भेजी गई चीजों से होता है। इसमें रॉकेट के टुकड़े, सैटेलाइट के टुकड़े, एस्ट्रोनॉट द्वारा छोड़ा गया सामान शामिल होता है। कुल मिलाकर, यह ऐसा कचरा होता है, जिसका अब अंतरिक्ष में कोई इस्तेमाल नहीं बचा। नासा के अनुमान के मुताबिक, रोजाना कम से कम एक टुकड़ा धरती पर आता है। ये टुकड़ा या तो धरती पर कहीं न कहीं गिर जाता है या फिर वायुमंडल में आते ही जल जाता है। अंतरिक्ष का ज्यादातर कचरा पानी में ही गिरता है, क्योंकि धरती पर 71% हिस्से में पानी है।

अप्रैल 2018 में चीनी स्पेस स्टेशन थियांगोग के पृथ्वी से टकराने का अनुमान था। इसे लेकर काफी चिंता जताई गई थी, लेकिन ये समुद्र में गिर गया था। इससे पहले 1979 में नासा का स्पेस सेंटर स्कायलैब भी धरती पर गिरा था, लेकिन वो भी समुद्र में ही गिरा था।

1957 में सोवियत संघ ने दुनिया का पहला आर्टिफिशियल सैटेलाइट 'स्पूतनिक' लॉन्च किया था। इसके बाद से अब तक 8,950 सैटेलाइट अंतरिक्ष में छोड़े जा चुके हैं। इनमें से 1,950 सैटेलाइट ही काम कर रहे हैं।

यूरोपियन स्पेस एजेंसी की गणना नासा से अलग है। इसके मुताबिक, अंतरिक्ष में जनवरी 2019 तक 10 सेंटीमीटर से बड़े 34 हजार टुकड़े मौजूद हैं। जबकि 1-10 सेमी तक के 9 लाख और 1 सेमी से छोटे 12.80 करोड़ टुकड़े हैं।